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मनवा / अजय सहाब

527 bytes added, 08:15, 14 सितम्बर 2020
मनवा तू काहे बेचैन रे ?
अब तक तो पाया है सूरज
थोड़ी सह ले रैन रे ! 
ये जीवन है जैसे साया
सबने खोजा ,हाथ न आया
जब तक तृष्णा ,कैसी तृप्ति
जीवन जाल से कैसी मुक्ति
होंगे गीले नैन रे ! सब के दिल में तुझ सा ग़म हैसब कुछ पाकर भी कुछ कम हैफूलों का जीवन भी देखोउन पर भी दुःख की शबनम हैसब कुछ तू है तू है सब मेंइक दिन तो मिलना है रब मेंजब तुझको आभास मिलेगासब कुछ तेरे पास मिलेगामिल जाएगा चैन रे
</poem>
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