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रुकी-रुकी-सी / फ़िराक़ गोरखपुरी
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16:20, 25 अक्टूबर 2020
ये मोड़ वो हैं कि परछाइयाँ देगी न साथ.
मुसाफ़िरों से कहो, उसकी रहगुज़र आई.
फ़ज़ा तबस्सुमे-सुबह-बहार थी लेकिन.
शबे-'फिराक़'उठे दिल में और भी कुछ दर्द.
कहूँ मैं कैसे,तेरी याद रात भर आई.
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