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हवा खि़लाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ / डी. एम. मिश्र
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07:17, 13 नवम्बर 2020
अनेक शेर मेर ज़ाया हो गये फिर भी
रदीफ़ , क़ाफ़िया , बहरेा वज़न निभाता हूँ
न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर ,मोमिन ही
मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ
</poem>
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