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09:49, 25 नवम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी
|संग्रह=अन्ततः / शंकरलाल द्विवेदी
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<poem>
किसी पर रीझ जाते हो, किसी से रूठ जाते हो।
किसी के हाथ लगते हो, किसी से छूट जाते हो।।
भटकते हो हृदय मेरे, तभी सौन्दर्य सागर में-
कहीं तुम डूब जाते हो, कहीं तुम टूट जाते हो।।
</poem>