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23:39, 17 दिसम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
सर से पा तक दर्द पहन कर बैठे हैं
नाकामी की गर्द पहन कर बैठे हैं
ख़ुशहाली के जो वादे भेजे तुमने
घर के सारे फ़र्द पहन कर बैठे हैं
हरियाली के ख़्वाब में डूबे सारे पेड़
तन पर कपड़े ज़र्द पहन कर बैठे हैं
अगले सीन की तैयारी में सब किरदार
अफ़साने का दर्द पहन कर बैठे हैं
लहजे में गर्माहट और जज़्बों में
हम सब मौसम सर्द पहन कर बैठे हैं
</poem>