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आलिंगन / कविता भट्ट

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<poem>
लड़की ने घबराकर रुआँसे स्वर में कहा-
मेरा जीवन कठिन प्रश्न पत्र -सा हो गया।

सच मानो मैंने बहुत परिश्रम से तैयारी की,
किन्तु जितना भी पढ़ा, वो कुछ इसमें नहीं।

'''आलिंगन''' में ले उसे, लड़का थोड़ा मुस्काया;
आँसू पोंछे, उसने थोड़ा उसे धीरज बँधाया।

मैं हूँ जब तुम्हारे पास, तो क्यों घबराती हो!
तुम्हें यह नहीं है पता; जब तुम मुस्काती हो;

सुन्दर सृष्टि में असीम शान्ति पसर जाती है;
अम्बर प्रफुल्ल हो जाता, धरा गुनगुनाती है।

वह रोते हुए ही- सकुचाकर खिलने लगी;
'''आलिंगन''' थोड़ा और कसा तो पिघलने लगी।

</poem>