भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आलिंगन / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
लड़की ने घबराकर रुआँसे स्वर में कहा-
मेरा जीवन कठिन प्रश्न पत्र -सा हो गया।
सच मानो मैंने बहुत परिश्रम से तैयारी की,
किन्तु जितना भी पढ़ा, वो कुछ इसमें नहीं।
आलिंगन में ले उसे, लड़का थोड़ा मुस्काया;
आँसू पोंछे, उसने थोड़ा उसे धीरज बँधाया।
मैं हूँ जब तुम्हारे पास, तो क्यों घबराती हो!
तुम्हें यह नहीं है पता; जब तुम मुस्काती हो;
सुन्दर सृष्टि में असीम शान्ति पसर जाती है;
अम्बर प्रफुल्ल हो जाता, धरा गुनगुनाती है।
वह रोते हुए ही- सकुचाकर खिलने लगी;
आलिंगन थोड़ा और कसा तो पिघलने लगी।