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04:41, 24 मार्च 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
बहुत सुकोमल नहीं
खुरदुरी- सी हैं, हथेलियाँ मेरी;
'''स्पर्श का सुख हो, न हो;'''
'''किन्तु निष्ठा है इनमें।'''
रेखाएँ दिखती नहीं इनमें,
बहुत परिश्रम किया है इन्होंने;
क्योंकि संघर्ष अस्तित्व का था।
'''अब तुम चूम लो हाथ मेरे;'''
ऐसे, जैसे कोई सिद्धपुरुष या योगी
अभिमन्त्रित कर देता है-
एक काला धागा या भोजपत्र।
'''तुम भी चूमकर मेरी हथेली-'''
'''इस पर कुछ रेखाएँ बना दो।'''
कोई कुछ भी कहे, मत सुनना।
तुम मेरे लिए हठ करके;
यदि सिद्ध बन जाओ;
तो मेरा वचन है- मिथ्या न होगा।
हमारी विजयगाथा पीढ़ियाँ बाँचेंगी।
</poem>