{{KKRachna
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
|अनुवादक=गेरू की लिपियाँ / अमरनाथ श्रीवास्तव
|संग्रह=
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<poem>
प्रत्यंचित प्रत्यञ्चित भौंहों के आगेसमझौते केवल समझौते।समझौते ।
:: भीतर चुभन सुई की,:: बाहर सन्धि-पत्र पढ़ती मुस्कानें।मुस्कानें ।:: जिस पर मेरे हस्ताक्षर हैं,:: कैसे हैं ईश्वर ही जाने।जाने ।
आंधी आँधी से आतंकित चेहरेगर्दख़ोर रंगीन मुखौटे।मुखौटे ।
:: जी होता आकाश-कुसुम को,:: एक बार बाहों बाँहों में भर लें।लें ।:: जी होता एकान्त क्षणों में:: अपने को सम्बोधित कर लें।लें ।
लेकिन भीड़ भरी गलियाँ हैं
काग़ज़ के फूलों के न्योते।न्योते ।
:: झेल रहा हूँ शोभा-यात्रा:: में चलते हाथी का जीवन।जीवन ।:: जिसके ऊपर मोती की झालर:: लेकिन अंकुश का शासन।शासन ।
अधजल घट से छलक रहे हैं
पीठ चढ़े जो सजे कठौते।कठौते ।
</poem>