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09:38, 9 सितम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश रंजक
|अनुवादक=
|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
घटिया सी एक शराब है शातिर की दोस्ती ।
सीने का एक घाव है शातिर की दोस्ती ।।
अपनी ज़मीर, अपनी ज़मी, देख कर चलो ।
मतलब का इक पड़ाव है शातिर की दोस्ती ।।
छोटी सी एक बात पर रख देगा तोड़ कर ।
बनिये का भाव-ताव है शातिर की दोस्ती ।।
उसकी फरेबदार जुबाँ पर न जाइए —
नेता का इक चुनाव है शातिर की दोस्ती ।।
जितना यक़ीन करते गए डूबते गए ।
टूटी सी एक नाव है शातिर की दोस्ती ।।
सम्बन्ध टूटने के बाद कहते फिरोगे —
नासूर का रिसाव है शातिर की दोस्ती ।।
</poem>