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{{KKRachna
|रचनाकार=अफ़अनासी फ़ेत
|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
स्नेहभरी सामान्य सी आवाज़ से
तुम जगाओ नहीं शाश्वत दीवाने इस कवि को
उसे रहने दो भीड़ में अवांछित और व्यक्तित्वहीन
शोरभरी लहरों के पीछे जाने दो उसे ख़ामोश ।

क्यों जगाया जाए अशक्त दुख में सोए हुए को
चारों ओर जब अन्धकार हो, क्यों कहा जाए उसे रोशनी के बारे में
क्यों उतारा जाए क़ब्र का आवरण उस पर से
जो अभिश्प्त है सदा के लिए हृदय में सो जाने के लिए ।

अन्ततः यह पवित्र राख है चुप पड़े कष्टों की !
अन्ततः यह हृदय हैं पवित्रता प्राप्त कर ली है जिन्होंने !
अन्ततः यह आर्तताद है भावावेगों से भरा हुआ !
अन्ततः ये काँटे हैं चुभते हुए हार के !

'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
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