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15:03, 10 नवम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
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<Poem>
कल मैं मायूस था ।
मैं सोच रहा था :
शायद हमारा आन्दोलन चकनाचूर हो रहा है
सौ साल के लिए, हमेशा के लिए नहीं, लेकिन
कम से कम सौ साल के लिए और
हमें आज जीना है ।
आज मुझे पता है : मैं
सिर्फ़
कल मायूस था ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>