603 bytes added,
21:05, 16 नवम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्रसखी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बता दे रे सखी, साँवरा को डेरो कितीं दूर ।
इत गोकुल उत मथुरा नगरी, जमुना बहत भरपूर ।
इत मथुरा की मस्त ग्वालिन, मुख पर बरसत नूर ।
चन्द्रसखी भजु बालकृष्ण छिब, साँवरे से मिलनो जरूर ।
</poem>