1,285 bytes added,
12:22, 17 नवम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
मैं शिक्षक हूँ
लेकिन मुझे कौन सिखाएगा ?
मुझे कैसे पता चले, वे क्या सिखलाना चाहते हैं ?
मेरे इरादे अच्छे हैं, तैयार हूँ, सबकुछ सीखने को
कसाइयों की इज़्ज़त करनी है
लेकिन हर कसाई की तो नहीं ?
किसकी नहीं करनी है?
शायद
मैं मात खा चुका हूँ : मैंने
फ़्युहरर को सिर्फ़ एक महान शख़्स कहा ।
मैं कोई कसर बाकी नहीं रखता, लेकिन
आख़िर इनसान हूँ और ग़लतियाँ हो ही जाती हैं ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>