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अक्तूबर शृंखला : तीसरी कविता / लुईज़ा ग्लुक / प्रियदर्शन
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14:35, 11 दिसम्बर 2021
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बर्फ़ गिर चुकी थी। मुझे याद है
खुली खिड़की से आ रहा संगीत
मेरे पास आओ, दुनिया ने कहा । मैं खड़ी थी
अपने ऊनी कोट में एक तरह के दमकते द्वार पर
-
—
अन्ततः मैं कह सकती हूँ
काफ़ी पहले; इससे मुझे ख़ासी ख़ुशी मिलती है
अनिल जनविजय
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