अक्तूबर शृंखला : तीसरी कविता / लुईज़ा ग्लुक / प्रियदर्शन
3
बर्फ़ गिर चुकी थी। मुझे याद है
खुली खिड़की से आ रहा संगीत
मेरे पास आओ, दुनिया ने कहा
यह कहना नहीं है
कि इसने बिल्कुल इन्हीं शब्दों में कहा
लेकिन मुझे इस शैली में सुन्दरता का अनुभव होता था ।
सूर्योदय । नमी की एक परत
हर जीवित वस्तु पर । ठण्डी रोशनी के चहबचे
नालियों में बन रहे थे ।
मैं खड़ी थी
दहलीज़ पर
अब यह हास्यास्पद लगता है
जो दूसरों को कला में मिला
मुझे प्रकृति में मिला
जो दूसरों को
मनुष्य से प्रेम में मिला, मुझे प्रकृति में मिला
बहुत आसान है। लेकिन वहाँ कोई आवाज़ नहीं थी ।
जाड़ा बीत चुका था। पिघली हुई गन्दगी में
हरीतिमा के कण दिखने लगे थे ।
मेरे पास आओ, दुनिया ने कहा । मैं खड़ी थी
अपने ऊनी कोट में एक तरह के दमकते द्वार पर —
अन्ततः मैं कह सकती हूँ
काफ़ी पहले; इससे मुझे ख़ासी ख़ुशी मिलती है
सौन्दर्य
मसीहा (healer) है, शिक्षक है
मौत मुझे उतना नुक़सान नहीं पहुँचा सकती
जितना तुमने पहुँचाया है
मेरी प्रिय ज़िन्दगी !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रियदर्शन
और लीजिए, अब पढ़िए अँग्रेज़ी में मूल कविता
Louise Glück
October
3
Snow had fallen. I remember
music from an open window.
Come to me, said the world.
This is not to say
it spoke in exact sentences
but that I perceived beauty in this manner.
Sunrise. A film of moisture
on each living thing. Pools of cold light
formed in the gutters.
I stood
at the doorway,
ridiculous as it now seems.
What others found in art,
I found in nature. What others found
in human love, I found in nature.
Very simple. But there was no voice there.
Winter was over. In the thawed dirt,
bits of green were showing.
Come to me, said the world. I was standing
in my wool coat at a kind of bright portal—
I can finally say
long ago; it gives me considerable pleasure. Beauty
the healer, the teacher—
death cannot harm me
more than you have harmed me,
my beloved life.