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माँ - 1 / रेखा राजवंशी

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|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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<poem>
माँ उन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है ।

मोटी लाल बिंदी में
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है ।

वो बात बेबात
हंसती है, मुस्कुराती है ।

कड़कती धूप में
शीतल हवा सी
मन को सहलाती है ।

तनहा सफ़र में
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है ।

कंगारूओं के देश में
अपनी उस माँ की
मुझे याद आती है ।
</poem>