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[[Category:तुर्की भाषा]]
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<poem>
ख़्वाब में देखा मैंने अपनी महबूबा को,
उसका पुरबहार सीना
कमर से ऊपर खिसकती हुई वो हसीना
जैसे कि बादलों के बीच चाँद ।
उसका हरकत में आना
मेरा हरकत में आना,
मेरा रुक जाना
उसका रुक जाना ।
उसके आँसुओं का क़तरों की शक़्ल में छलक आना
और टपकना टेलीग्राफ़ के तारों पर ।
टेलीग्राफ़ का तार : ख़बर
आँसू : आकस्मिक ख़ुशी ।
ख़्वाब-ब-ख़ैर ! आमीन !
इब्राहीम के हिस्से दस साल और हैं ।

१९४६

''' अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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