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क़ैदख़ाने में इब्राहीम का ख़्वाब / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

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ख़्वाब में देखा मैंने अपनी महबूबा को,
उसका पुरबहार सीना
कमर से ऊपर खिसकती हुई वो हसीना
           जैसे कि बादलों के बीच चाँद ।
उसका हरकत में आना
         मेरा हरकत में आना,
मेरा रुक जाना
          उसका रुक जाना ।
उसके आँसुओं का क़तरों की शक़्ल में छलक आना
                       और टपकना टेलीग्राफ़ के तारों पर ।
टेलीग्राफ़ का तार : ख़बर
आँसू : आकस्मिक ख़ुशी ।
         ख़्वाब-ब-ख़ैर ! आमीन !
          इब्राहीम के हिस्से दस साल और हैं ।

१९४६

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल