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21:07, 14 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर'
|अनुवादक=
|संग्रह=धूप भरकर मुट्ठियों में / मनोज जैन 'मधुर'
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<poem>
दृष्टि है इक बाहरी
तो एक अन्दर है।
बून्द का मतलब समन्दर है ।
कौन है जो सांस देकर
सुध हमारी ले रहा।
देह-नौका,भव-जलधि में
रात-दिन जो खे रहा ।
तेज से जिसके दमकता
सूर-चन्दर है ।
कञ्ज - सम भव-पङ्क में
खिलना हमारा ध्येय है ।
सत्य, शिव, सुन्दर,हमारा
सर्वदा पाथेय है ।
ऊर्ध्वगामी बोध दे जो
वह पयम्बर है ।
ब्रह्म -वंशज हम सभी हैं
ब्रह्म-मय हो जाएँगे ।
बैन सुन अरिहन्त भाषित
शिव अवस्था पाएँगे।
जीतकर खुद को हमें
बनना सिकन्दर है ।
</poem>