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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर'
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|संग्रह=धूप भरकर मुट्ठियों में / मनोज जैन 'मधुर'
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<poem>
दृष्टि है इक बाहरी
तो एक अन्दर है।
बून्द का मतलब समन्दर है ।

कौन है जो सांस देकर
सुध हमारी ले रहा।
देह-नौका,भव-जलधि में
रात-दिन जो खे रहा ।

तेज से जिसके दमकता
सूर-चन्दर है ।

कञ्ज - सम भव-पङ्क में
खिलना हमारा ध्येय है ।
सत्य, शिव, सुन्दर,हमारा
सर्वदा पाथेय है ।

ऊर्ध्वगामी बोध दे जो
वह पयम्बर है ।

ब्रह्म -वंशज हम सभी हैं
ब्रह्म-मय हो जाएँगे ।
बैन सुन अरिहन्त भाषित
शिव अवस्था पाएँगे।

जीतकर खुद को हमें
बनना सिकन्दर है ।
</poem>
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