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{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
कितना ख़ूबसूरत है
वर्ग संघर्ष में अपनी आवाज़ उठाना ।

ज़ोरदार और गूँजते हुए शब्दों में संघर्ष के लिए जनता से अपील करना
शोषक को नेस्तनाबूद करने की, शोषितों को आज़ादी दिलाने की ।

मुश्किल और उपयोगी हैं हर दिन के छोटे-छोटे काम
सख़्ती से चोरी-छिपे काम
मालिकों की बन्दूकों के नीचे
पार्टी के जाल का विस्तार :

बोलना, लेकिन
बोलने वाले को छिपाना ।
जीतना, लेकिन
जीतनेवाले को छिपाना ।
मरना, लेकिन
मरनेवाले को छिपाना ।

शोहरत के लिए तो सभी बहुत कुछ करते हैं, लेकिन कौन
करता है कुछ ख़ामोशी की ख़ातिर ?
लेकिन जब कोई ग़रीब किसी को खाने की मेज़ पर बुलाता है
उसकी तंग टूटी-फूटी झोपड़ी से
महानता झाँकती है
और शोहरत बेकार ही पूछती है
ऐसा करनेवाले का नाम ।
सामने आता है
एक लमहे के लिए
अज्ञात, छिपा हुआ चेहरा, स्वीकारने के लिए
हमारा आभार ।

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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