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18:25, 29 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
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<Poem>
रविवार सुबह । गिरजे के सामने एक बेंच पर
ग़रीब तबके की एक बुढ़िया ।
अन्दर ऑर्गन का संगीत । बुढ़िया का ध्यान चिड़ियों के चहचहाने पर ।
उसकी बहनें माँग रही हैं ईश्वर का आशीर्वाद । वह इकट्ठा कर रही है
धूप की कुछ गर्म किरणें, जैसे थकी-हारी बटोरने वाली
फ़सल कटने के बाद बचे अनाज बटोरती है ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
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