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गिरजे के सामने एक बुढ़िया / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य
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18:25, 29 अप्रैल 2022
उसकी बहनें माँग रही हैं ईश्वर का आशीर्वाद । वह इकट्ठा कर रही है
धूप की कुछ गर्म किरणें, जैसे थकी-हारी बटोरने वाली
फ़सल कटने के बाद
बचे
बचा
अनाज बटोरती है ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
अनिल जनविजय
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