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परवाह / शेखर सिंह मंगलम

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<poem>
मेरे असह्य दुःखों के बीच
तुम्हारा मुस्कुरा देना
पीड़ा में आनंद का सृजन है।

हाथों में हाथ ले कहना
क्या हुआ कोई बात है क्या?
क्यों इतने परेशान हो?
सुकून के बीज का अंकुरण है।

नज़रों में जमाकर
वात्सल्य की पलकों में ढाँप मुझे
अचानक से कहना-
सुनों ! तुम्हें खुश नहीं देखूँ तो
मैं बेचैन हो जाती हूँ..
अनंत प्रेम का जीवन में स्फुरण है।
</poem>
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