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मेरा दिनशुरू होता आपसेखत्म आप परजीना चाहता हूँ भोर कोआपके प्रणव श्वास -प्रश्वास सेपाखी के कलरव के साथआपकी मधुरा वाणी का पानदे जाता मुझे लोकोत्तर आनन्दसाँझ होते हीढूँढता हूँ तुम्हेंजैसे खोजता नन्हा बच्चासूने नीड मेंदाना -दुनका खोजने गई माँ कोऔर जब रात हो जाती हैनींद के अंक मेंजाने से पहलेमैं भी खोजता हूँ तुमकोकितुम्हारे दो प्रणयसिक्त शब्द मिल जाएँताकि मेरे अर्धमुद्रित नयनखो जाएँ स्वप्नलोक में।यही एक पथ बचा हैजो तुमको मुझसे जोड़ता हैजब तुम नज़र नहीं आतेतोमेरी भोर अँधेर हैमेरी निशागहन कालरात्रि बन जाती हैयह व्रत है तुमसे जुड़ने कापलभर इन बेलाओं मेंमिल जाना।-0-
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