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{{KKRachna
|रचनाकार=रश्मि शर्मा
|अनुवादक=रश्मि विभा त्रिपाठी
|संग्रह=ऊषा आएगी / रश्मि विभा त्रिपाठी
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<poem>
1
झरे कुहासा
काँपे रैन- बसेरा
अलाव ठंडा।

झरै कुहेसा
कम्पै रैनि- बसेरा
कौरा सिरान।
2
जीवन चक्र
चले अनवरत
ऋतु या वक्र।

जीवन चक्र
चलै अछनाधार
रितु की वक्र।
3
मिट्टी की गंध
अपनों को तरसे
बसे विदेस।

माँटी कै गन्ह
अप्नन क अहकै
बसे बिदेस।
4
सूनी पड़ी है
गाँव की पगडण्डी
राह देखे माँ।

सून परी ह्वै
गाँव केरि डहरि
बाट हेरै माँ।
5
आ गई बाढ़
सूने हो गए खेत
रोए किसान।

आइ गै बाढ़
सून हुइ गे ख्यात
बिल्पे किसान।
6
तुम्हारी बातें
ज्यों चाँदनी झरती
उजली रातें।

तुम्हरे बैन
जौं अँजोरिया झरै
उँजेरि रैन।
-0-
</poem>