भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु / उपमा शर्मा / रश्मि विभा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
1
झरे कुहासा
काँपे रैन- बसेरा
अलाव ठंडा।
झरै कुहेसा
कम्पै रैनि- बसेरा
कौरा सिरान।
2
जीवन चक्र
चले अनवरत
ऋतु या वक्र।
जीवन चक्र
चलै अछनाधार
रितु की वक्र।
3
मिट्टी की गंध
अपनों को तरसे
बसे विदेस।
माँटी कै गन्ह
अप्नन क अहकै
बसे बिदेस।
4
सूनी पड़ी है
गाँव की पगडण्डी
राह देखे माँ।
सून परी ह्वै
गाँव केरि डहरि
बाट हेरै माँ।
5
आ गई बाढ़
सूने हो गए खेत
रोए किसान।
आइ गै बाढ़
सून हुइ गे ख्यात
बिल्पे किसान।
6
तुम्हारी बातें
ज्यों चाँदनी झरती
उजली रातें।
तुम्हरे बैन
जौं अँजोरिया झरै
उँजेरि रैन।
-0-