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06:58, 18 जून 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=बर्लिन की दीवार / हरबिन्दर सिंह गिल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अंत में हम
यह जान लें
पत्थर
निर्जीव नहीं हैं।
चाहे वो
गलियों के हों
या हों
महलों के
या पाये जाते हों
पहाड़ों पर
या खोदकर
निकाले जाते हों
खदानों से,
क्योंकि
ये पत्थर
जिंदगी का
उतना ही आवश्यक
मूल तत्व है
वैसे ही जितना है
कोई भी खनिज।
चाहे वो
कोयला हो
या हो पन्ना,
पत्थरों के
गर्भ से ही
फूटकर
निकलता है।
</poem>