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आकाश अजनबी धरती बेगानी
उस दुनिया की अलग कहानी
मेरे सब ख़्त नाम्तुम्हारे
पहली डाक में मुझे भिजवा दो
मेरी सब साँझें लौटा दो
 
कहीं गुम गया वो सूरज भी
सब्ज़ पहाड़ों पर चढ़ता था
चम-छम नदियों में नहाता था
खुले मैदानों में घूमता था
गहरे सरोवर में तैरता था
नीले अम्बर पक्षियों की कतारें
धूप में छम-छम पड़ती बरखा
क़ुदरत के उस बही ख़ाते पर
अपने पिछले दिन गिनवा दो
मेरी सब साँझें लौटा दो
 
मालूम है मैं नहीं हूँ कुन्जू
न मैं पुन्नू नही रांझा
तू भी चैन्चलो
या सस्सी नहीं
फिर उलाहना गुस्सा कैसा
घूंघरू वाली ऊँटनी पर चढ़ कर
तू मेले में आई न मिलने
न ही तेरी मोटर के पीछे
चाक-दामन से मैं ही दौड़ा
तेरी कुरती के बटनों पर
 
 
 
 
'''मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव
</poem>
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