मेरी सब सांझें लौटा दो / दर्शन दर्शी
जिस परदेस में बसते हो तुम
उस देस की रुत अलग है
उस देस के बादल और हैं
उस देस का सावन पराया
आकाश अजनबी धरती बेगानी
उस दुनिया की अलग कहानी
मेरे सब ख़्त नाम्तुम्हारे
पहली डाक में मुझे भिजवा दो
मेरी सब साँझें लौटा दो
कहीं गुम गया वो सूरज भी
सब्ज़ पहाड़ों पर चढ़ता था
चम-छम नदियों में नहाता था
खुले मैदानों में घूमता था
गहरे सरोवर में तैरता था
नीले अम्बर पक्षियों की कतारें
धूप में छम-छम पड़ती बरखा
क़ुदरत के उस बही ख़ाते पर
अपने पिछले दिन गिनवा दो
मेरी सब साँझें लौटा दो
मालूम है मैं नहीं हूँ कुन्जू
न मैं पुन्नू नही रांझा
तू भी चैन्चलो
या सस्सी नहीं
फिर उलाहना गुस्सा कैसा
घूंघरू वाली ऊँटनी पर चढ़ कर
तू मेले में आई न मिलने
न ही तेरी मोटर के पीछे
चाक-दामन से मैं ही दौड़ा
तेरी कुरती के बटनों पर
बोझ किसी दूसरी छाती का
अब मेरी कनपटियों पर भी
तेल लगाती हैं और उंगलियाँ
गुज़रे जीवन का वो टुकड़ा
समय के पटवारी को कह कर
सब लिखवा दे मेरे नाम
मेरी सब साँझें लौटा दो
मेरी सब शामें लौटा दो
शब्दार्थ : कुन्जु,पुन्नू,रांझा, चैन्चलो,सस्सी = ये सभी विभिन्न प्रेम-कथाओं के पात्र हैं।
मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव