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फूठरापौ / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
कदैई
कठैई अेक उणियारौ जोयौ हौ
सावळ-साख्यात

इत्ता बरसां पूठै आज
अेच-बेच रा लेहरावै उणरा कुंतळ
फूलां रा झाड़ ज्यूं
फूलै है वारंवार
ओळूं रै आर-पार

कालै कदास वांरी सौरम आवै
पिरसूं स्यात गाल माथै वांरौ परस सरसरावै
धकलै किणी दिन म्हारै खांधै
छूटयोड़ौ खोहरा रौ दांणौ लाध जावै।
धवळौ-कंवळौ
छोटोसोक-अेटम
जिकौ किणी ई बगत
म्हारी आतमा में धंस परो फूट जावै
इण सूं पैली
सगुण के निरगुण
किण खोळ्यै फूठरी फबै थूं
मन नै इणरौ कूंतौ व्है जावै
बस
इतीक-सी आयस री दरकार
अर उण औसर री उडीक है।
</poem>
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