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मेरे आगे हार गई थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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15:16, 12 अगस्त 2022
<poem>
घिरी उदासी जब जीवन में
तब मैंने त्योहार मनाया
।
रोते रहे लोग जब जीभर
आँसू पीकर मैं
मुस्काया
मुस्काया।
रो-रोकर जो दिन कटने थे
मेरे आगे हार गई थी
जीवन की हर इक
मजबूरी,
मजबूरी।
गिरकर उठकर पूरी की थीं,
धरती से अम्बर की दूरी।
</poem>
वीरबाला
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