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मैं एक ज़रूरतमन्द की तरह उससे मिलता घर से निकला तो मैंने सोचा कि मैंनेगीज़र तो ऑन नहीं छोड़ दिया है ।अमूमन वह किसी रेस्तराँ में मिलने के लिएकहता और कहीं गैस तो नहीं खुली है । जगह के चुनाव को लेकर मैं घबरातालेकिन मैं हाँ भी कर देता और अगर नल खुला रह गया होगा…तो. और अगर हीटर चला रह गया होगा…तो. मेरी ग़ैरमौजूदगी में पता नहीं क्या होगा । मिलते ही वहकहता कि मुझे तो भूख लगी हो सकता है कि घर राख मिले या पानी मेंडूबा । आपको ?वह चाहता था हो यह भी सकता है कि क्रान्ति हो जाए औरजब मैं कहूँ कि मुझे अटैची के साथ घर पहुँचूँ तो नहींपता लगेलगी मेरे घर में एक आदिवासी रह रहा है । लेकिन पैदल, बस, मेट्रो में हलकानहोने के बावजूद मैं स्याह चेहरे दरवाज़ा खटखटाऊँ – वह दरवाज़ा खोलकरदहलीज़ पर खड़ा हो जाए और सूखतेमैं उसे देखकरहोंठों से उससे यह कहता था कि मुझे भूखनहीं लगती । इससे वह जितना आश्वस्त विस्मित होता,रहूँ ।शर्मिन्दा भी उतना ही और मुझमें सब कुछ को लुटा देने का सुखदिखे उसे ।
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