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06:57, 6 सितम्बर 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|अनुवादक=सुलोचना वर्मा
|संग्रह=
}}
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<poem>
अन्तर मेरा विकसित करो
अन्तरतर हे !
निर्मल करो, उज्ज्वल करो,
सुन्दर करो हे !
जाग्रत करो, उद्यत करो,
निर्भय करो हे !
मंगल करो, निरलस नि:संशय करो हे !
अन्तर मेरा विकसित करो,
अन्तरतर हे ।
सबके संग युक्त करो,
मुक्त करो हे बन्ध,
सकल मर्म में संचार करो
शान्त तुम्हारे छ्न्द ।
चरणकमल में चित्त मेरा निस्पन्दित करो हे,
नन्दित करो, नन्दित करो,
नन्दित करो हे !
अन्तर मेरा विकसित करो
अन्तरतर हे !
'''मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा'''
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