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13:00, 12 अक्टूबर 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=देवनीत
|अनुवादक=जगजीत सिद्धू
|संग्रह=
}}
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<poem>
माँ की भरी जवानी
बिना आसमान,
दादी देखती है,
डर जाती है,
रसोई के अन्दर जाकर दोनों हाथो में,
नमक लगाती है,
माँ के काले बालो को,
हाथो से सहलाती है,
अब
दादी को सिर्फ़ ,
नमक पर,
विश्वास रह गया है ...
—
'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : जगजीत सिद्धू'''
</poem>