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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
काल की गहरी निशा है
दर्द भीगी हर दिशा है
साथ तुम मेरा निभाना
नहीं पथ में छोड़ जाना
एक दीपक तुम जलाना।

गहन है मन का अँधेरा है
दूर मीलों है सवेरा
कारवाँ लूटा किसी ने
नफ़रतों ने प्यार घेरा
यह अंधों का शहर है
क्या इन्हें दर्पण दिखाना।
'''-0-[15 -10-2018]'''
</poem>
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