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23:41, 18 नवम्बर 2022
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कितनी बार जाती हैं
उँगलियाँ बंद साँकलों तक
हटती है उतनी ही बार
थोड़ी-सी धूल
पर उसी गति से
लौट आते हैं हाथ
पोर पर लगी धूल
आँचल से पोंछकर
अपनी धुरी पर
यह सोचते हुए-
धूल साँकलों की
हटाने से क्या होगा
-0-
</poem>