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धूल / लिली मित्रा
Kavita Kosh से
कितनी बार जाती हैं
उँगलियाँ बंद साँकलों तक
हटती है उतनी ही बार
थोड़ी-सी धूल
पर उसी गति से
लौट आते हैं हाथ
पोर पर लगी धूल
आँचल से पोंछकर
अपनी धुरी पर
यह सोचते हुए-
धूल साँकलों की
हटाने से क्या होगा
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