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पनीला हास / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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21:03, 1 जनवरी 2023
भर-भराकर ढह जाता
बस बाकी सिर्फ़ पनीला
हास रह
जाता।।
जाता,
अकेला
सिसक पड़ता।
'''(21-6-78)'''
-0-
</poem>
वीरबाला
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