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संस्रिति संसृति के विस्तृत सागर मेंसपनो सपनों की नौका के अंदरदुख सुख कि की लहरों मे उठ गिर
बहता जाता, मैं सो जाता ।
सहलाता, मैं सो जाता ।
मेरे जीवन का खाराजलखारा जल
मेरे जीवन का हालाहल
को‌ई अपने स्वर में मधुमय कर
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