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12:05, 9 जनवरी 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
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<poem>
आग हो जाओ, हवाओ
आग !
यह सड़न / सीलन
समय
रोगों भरा,
और इसमें
गर्भ से बाहर जो आकर
रेंगता
वह अधमरा,
ऊँघता है जाग !
यह घुटन / सुलगन
धुआँ
सहता धुआँ
और इसमें
खोपड़ी से पेट को जो
जोड़ता
वह टेंटुआ,
डालता है झाग !
5-10-1976
</poem>