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ज़िन्दगी / विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ / वरयाम सिंह
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07:36, 19 जनवरी 2023
अब वह मिट्टी का ढेला है जमा हुआ ।
यहाँ गरमी के मौसम की तरह
नाजुक
नाज़ुक
उछलती हो तुमचाकुओं के बीच
उज्जवल
उज्ज्वल
लपटों की तरह
यहाँ आर-पार गुजरते तारों के बादल हैं
और मृतकों के हाथ से गिर पड़ी है ध्वजा ।
अनिल जनविजय
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