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11:26, 25 फ़रवरी 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव
|अनुवादक=मदनलाल मधु
|संग्रह=मेरा दग़िस्तान / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अभी तुम धागे के गोले से
गॊली फिर तुम बनो मगर,
बनो हथौड़ा ऐसा भारी
जो तोड़े पर्वत, पत्थर ।
तीर बनोगे ऐसे तुम जो
बैठे ठीक निशाने पर,
नर्तक भी तुम सुघड़ बनोगे
गायक ऐसे, हो मधुमय स्वर ।
गली-मौहल्ले के लड़कों में
तेज़ सभी से दौड़ोगे,
घुड़दौड़ों में सब लोगों को
तुम तो पीछे छोड़ोगे ।
घाटी में से तेज़ तुम्हारा
घोड़ा उड़ता जाएगा,
बादल बन नभ में जा पहुँचे
वह जो धूल उड़ाएगा ।
—
'''रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु'''
</poem>