1,712 bytes added,
06:49, 20 मार्च 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
छुपा कर अपनी करतूतें हुनर की बात करते हैं,
शजर को काटने वाले समर की बात करते हैं।
जले हैं जो नशेमन राख पर उनकी खड़े होकर,
जिन्होंने फूँक डाले घर वो घर की बात करते हैं।
अनासिर जिसके थे महरो-वफ़ा, शफक़त, अदब, ग़ैरत,
इन्हें जो भूल बैठा उस बशर की बात करते हैं ।
घिरे हैं मुद्दतों से जो अंधेरों में मसाइब के,
नहीं आती कभी जो उस सहर की बात करते हैं।
सभी से बज़्म में बेसाख़्ता हँसकर मिली लेकिन,
नहीं हम पर पड़ी जो उस नज़र की बात करते हैं।
हुए तक़सीम जब से दुश्मनी क़ाइम भी है लेकिन,
उधर वाले हमारी हम उधर की बात करते हैं ।
नहीं है राबिता जिनका 'असर' पैरों के छालों से,
घरों से जो नहीं निकले सफ़र की बात करते हैं ।
</poem>