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बुनाई का दुख -2 / कमल जीत चौधरी
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18:18, 17 मई 2023
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<poem>
रंग-बिरंगे
आजीवन
कच्चे-पक्के
एक धागा बुनता रहा
पतले
मेरा क्षण
-
मोटे
प्रतिक्षण
रेशमी सूती धागे लेकर
प्रतिकार में उसने
बुनती हूँ रोज़
खो दिया
अपना
आप —
तुम एक ही झटके में
उधेड़ देते हो मुझे
मेरी प्रत्येक बुनाई का
अन्तिम सिरा
तुम्हारे पास है
।
</poem>
अनिल जनविजय
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