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18:43, 17 मई 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमल जीत चौधरी
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<poem>
एक बड़े बंगले के सामने से गुज़रते हुए
एक ख़तरनाक कुत्ता अन्दर से हम पर भौंकता है
मेरा बच्चा तर्जनी उठाकर कहता है
भयानक कुत्ते,
मैं तुझे गन मार दूँगा
सुनकर
मालिक की मूँछें ताव खाने लगती हैं
शायद उनके कुत्ते को आज तक किसी ने
कुत्ता नहीं कहा था —
तर्जनी की ठन से
मेरे बच्चे के मन से
मेरे कन्धे पर उसकी पुलक से
मेरी रेखाओं में थिरकन आ जाती है:
कुत्ते की पूँछ
हिलने लगती है
मालिक की मूँछ जलने लगती है ।
</poem>
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