Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
शार्क मछलियों को जब हमारे शहरमैंने चकमा दियाबरबाद हुएबूचड़ों की लड़ाई सेनेस्तनाबूदहमने उन्हेंफिर से बनाना शुरू कियाठण्ड, भूख और कमज़ोरी में ।
शेरों मलबे लदे ठेलों को मैंने छकायाख़ुद ही खींचा हमने,धूसर अतीत की तरहनंगे हाथों खोदीं ईंटें हमनेताकि हमारे बच्चेदूसरों के हाथों न बिकें
पर मुझे अपने बच्चों के लिएजिन्होंने हड़प लियाहमने बनाए तबवे स्कूलों में कमरेखटमल थे।और साफ़ किया स्कूलों को
और माँजा,पुराना कीचड़ भराशताब्दियों का ज्ञानताकि वह बच्चों के लिए सुखद हो । (19411947-4753)
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,362
edits