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|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
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<poem>
बन्द खिड़की की देह पर हाथ रखा ।
सफ़ेद दीवाल की देह पर भी ।
गड्ढे बन गए दोनो जगहों पर ।

उन्ही में से एक गड्ढे में आज भी
आँखों पर दूरबीन लगाकर
आकाश की ओर देख रहे है गैलिलियो –
चर्च के निर्देशों से बेख़बर ।

दूसरे गड्ढे के भीतर मेज़ पर किताब - कापी लेकर
बैठे है बरीस पस्तिरनाक ।
उन दोनो गड्ढों के बीच की जगह में खुला-खुला-सा एक चबूतरा
थियेन - आन - मेन ।

चारों ओर फैली हुई हैं छात्र - छात्राओं की मृतदेहें
कुछेक अभी भी हिल रही हैं ।
उनलोगों के ऊपर से अभी -अभी
एक टैंक निकल कर चला गया ।

'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>
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