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16:35, 21 जून 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
}}
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<poem>
जिस - जिसको जितनी तकलीफ़ दी है
सहज मे ही जिस - जिसको –
एक एक कर सब लौट रहे हैं,
एक एक कर खींचकर फाड़ रहे हैं
मन के हाथ, पैर, होंठ और स्तन ।
और कर्त्तव्य है मेरा यह ,
जतन से सबको इकट्ठाकर
फिर से जोड़ देना यथावत,
पहले की तरह ।
'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>