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शहतूत के पेड़ / अश्वघोष
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21:35, 16 जुलाई 2023
एक मुद्द्त बाद तो
यह लाजवन्ती
द्वार आई है
,
प्यार में डूबे हुए
कुछ गुनगुने सम्वाद
अपने साथ लाई है
।
क्या कहेगा कल ज़माना
क्या कभी भी एक क्षण
अपनी ख़ुशी से
भोग पाते हैं
,
रोटियों के
व्याकरण में ही
अनिल जनविजय
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